कुछ दिन पहले ईमेल में एक पावर प्वाइन्ट प्रदर्शन मिला। इसमें अदरक का गुणगान किया गया था। लेखक ने वुफल मिलाकर अदरक को 22 विभिन्न प्रकार वेफ रोगों में गुणकारी बताया था। इन रोगों में सर्दी, जुकाम, कब्ज से लेकर वैंफसर तक वेफ रोगों में अदरक की उपयोगिता का वर्णन था। कई रोगों की रोकथाम में तथा कई अन्य रोगों की चिकित्सा में अदरक को अत्यंत प्रभावी बताया गया था।
इस प्रकार वेफ लेख विभिन्न वस्तुओं वेफ विषय में विभिन्न पत्रा-पत्रिकाओं में, समाचार पत्रों में, टी.वी. वेफ कार्यव्रफमों में बराबर प्रकाशित होते रहते हैं। कहीं तुलसी, कहीं काली मिर्च, कहीं इलायची, तो कहीं हल्दी कोई भी वस्तु शेष नहीं है। यहाँ तक कि दाह कारक पदार्थ हरी या लाल मिर्च का भी गुणगान देखने में आया है। जन साधरण इन सबसे प्राप्त जानकारी का प्रयोग वुफछ अपनी जीवनचर्या में सम्मिलित कर तथा कितना बहस करने वेफ लिए प्रयोग करते रहते हैं। प्रश्न यह कि यह गुणगान वास्तविक है तथा वैज्ञानिक मूल्यों पर कितना खरा उतरता है।
उदाहरण वेफ लिए वेफवल अदरक को ही लें। अदरक एक प्रकार का मसाला हैं सूख कर इसी की सौंठ बनती है। सौंठ का प्रयोग कई प्रकार की औषध्यिों में किया जाता हैं अदरक को चाय वेफ साथ उबालकर अथवा सब्जी, दाल आदि का स्वाद बढ़ाने वेफ लिए प्रयोग किया जाता है। अपने अन्य गुणों वेफ अतिरिक्त इसवेफ तीखे स्वाद वेफ कारण इसे क्षुधवधर््क तथा स्वाद वर्धक समझा जाता है।
ध्रातल पर देखें तो भारत वेफ अनेक घरों में 'अदरक वाली चाय' की ललक देखी जाती है। चाय वेफ साथ अदरक का सेवन दिन में कई बार किया जाता है। यदि अदरक वेफ सभी गुणों का लाभ इन चाय प्रेमियों को मिल पाता तो इस प्रकार प्रयोग करने वाले लोगों को तो पूर्णतया रोग मुक्त हो जाना चाहिए था। परन्तु क्या ऐसा हुआ है? अवश्य ही यह एक गवेषणा का विषय है। परन्तु इस विषय पर एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करना जरूर आवश्यक है।
संसार में जितने भी तीखे स्वाद वेफ भोज्य पदार्थ हैं उनका तीखापन किसी न किसी प्रकार वेफ तीव्र अम्ल ;एसिडद्ध वेफ कारण होता है जो उन पदार्थों में पाया जाता है। अम्ल का गुण ही हे जलन पैदा करना। अतः इन पदार्थों से युक्त भोजन वेफ द्वारा जीभ से लेकर मलद्वार तक जलन उत्पन्न होती है। और मुख इस प्रकार वेफ भोजन से मुक्ति पाने वेफ लिए बिना भली भाँति चबाए ही गले से नीचे उतार देता है। पेट में आकर भोजन अमाश्य में उत्पन्न अम्ल वेफ साथ मिलकर और अध्कि दाहक हो जाता है। अध्कि दाह वेफ कारण पेट में जलन वेफ अनुभव से पेट भी इस भोजन को जल्द आगे बढ़ा देता है। इस प्रकार पेट भी उचित सम ये पहले ही भोजन को आँतों में ठूँस देता है। बार-बार अतिरिक्त अम्ल युक्त भोजन अमाश्य की अम्लरक्षक परतों पर विपरित प्रभाव डालता है। इससे एसीडिटी तथा अमाश्य में अल्सर जैसी बीमारियों का भय उत्पन्न हो सकता है। जब यह भोजन आँतों में पहुँचता है, प्रव्रिफया पुनः दोहराई जाती है और पचा, अध्पचा भोजन छोटी आँतों से बड़ी आँतों में होता हुआ मल मार्ग से बाहर हो जाता है। इस प्रकार होने वाला मल निष्कासन इस मिथ्या धरणा को जन्म देता है कि अदरक कब्ज नाशक है। भोजन की इन तीव्र गति वेफ दो अन्य परिणाम होते हैं, पहला यह कि पाचन प्रणाली अति परिश्रम वेफ कारण थक जाती है। दूसरा भोजन में उपस्थित अन्न का पूर्ण पाचन नहीं हो पाता अर्थात अन्न की बर्बादी होती है।
थकी हुई पाचन प्रणाली को लगातार वैसे ही काम करने वेफ लिए विवश करने पर उसकी गति ध्ीमी हो जाती है। जिसे ठीक करने वेफ लिए उन्हीं अथवा वैसे ही पदार्थों का बार-बार प्रयोग करना आवश्यक हो जाता है। अन्त में आँतों की अवस्था उस थवेफ हुए घोड़े की भाँति हो जाती है जिसे हंटर मार-मारकर दौड़ाया जाता है। जिस प्रकार एक घोड़ा अंत में थककर गिर ही पड़ता है, उसी प्रकार आंत भी अंत में उत्तर देने को विवश हो जाती है।
इस प्रकार वेफ भोजन से अन्न का पूरा पाचन नहीं होता। अतः अनपचे अन्न की कापफी मात्रा मल में विसर्जित हो जाती है। यदि इस प्रकार विनष्ट होने वाली भोजन वेफ बदले अतिरिक्त भोजन न किया जाए तो शरीर का भार कम होने लगता है। यह वजन की कमी इस मिथ्या अवधरणा को जन्म देती है कि अदरक वजन कम करने में सहायता करती है। दूसरी ओर पेट वेफ जल्दी-जल्दी खाली होने वेफ कारण पिफर से खाने की आवश्यकता अनुभव होती है। इसे अदरक का क्षुध वधर््क गुण मान लिया जाता है। इस प्रकार वैज्ञानिक विचार करने पर अदरक वेफ कई तथाकथित गुण स्वतः ही अवगुणों में परिवर्तित हो जाते हैं।
उपरोक्त प्रदर्शन में अदरक का एक और गुण बताया गया है। कहा गया है कि अदरक गरम होती है। अतः सर्दी, जुकाम, ज्वर आदि में लाभ करती है। पहले तो आध्ुनिक विज्ञान की गवेषणा वेफ द्वारा गर्म ठंडा आदि का सि(ांत हेी अस्वीकार कर दिया गया है। तब इन सब रोगों में अदरक ;सौंठद्ध वैफसे काम करती है। वैज्ञानिक विचार करने पर दिखाई देता है कि अदरक अपने अम्ल वेफ कारण आँतों वेफ विशेष परिश्रम करने पर विवश कर सकती है। अतः आँतों में एकत्रित मल को बाहर कर शरीर की सपफाई कर सकती है। आँतों की सपफाई से सर्दी का प्रकोप स्वयं ही कम हो जाता है। दूसरे अदरक का अम्ल रक्त में मिल जाता है। रक्त भी इस अम्ल को सहन नहीं कर पाता। अतः इससे मुक्त पाने वेफ लिए त्वचा मार्ग का सहारा लेता है। और यह अम्ल-विष पसीने वेफ रूप में शरीर वेफ बाहर निकलता है। यह पसीना शरीर पर सूखने वेफ समय शरीर का वुफछ ताप खींच लेता है। जिससे तापव्रफम कम हो जाता है। परन्तु यह सभी लाभ तो एक एनीमा द्वारा तथा अध्कि मात्रा में जल पीकर अथवा स्पंज स्नान द्वारा भी प्राप्त किए जा सकते है। सभी जानते है कि प्रावृफतिक चिकित्सा की यह विधएँ साइड इपैफक्ट रहित है। ऐसी अवस्था में अदरक का व्यवहार करना व्यर्थ ही साइड इपैफक्ट्स को आमन्त्रिात करना है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि मसालों में औषध्ीय गुण नहीं है। अवश्य ही हंै। परन्तु किसी भी औषध् िको औषध् िकी भाँति ही प्रयोग करना चाहिए। उसकी सुनिश्चित, निर्धरित मात्रा होनी चाहिए। उसका उचित अनुपान तथा परहेज होना चाहिए। साथ ही यह भी समझ लेना चाहिए कि हर औषध् िकी भाँति मसालों वेफ भी साइड इपैफक्ट होना अवश्यम्भावी है। इनका भी ज्ञान होना चाहिए। औषध्यिों को भोजन का भाग बनाकर प्रतिदिन प्रयोग करना एक भयावह कार्य है। इससे उनकी आदत पड़ सकती है। किसी नशीले पदार्थ की भाँति ही यह औषध्यिाँ मनुष्य की विवशता बन सकती है, जिसवेफ बिना शरीर अस्वस्थ हो सकता है। उसवेु अपने दैनिक कार्यकलाप में बाध उपस्थित हो सकती है। लंबे समय तक उसका उपयोग पाचन प्रणाली को दुर्बल बना सकती है। इस प्रकार मसालों वेफ लंबे समय तक लगातार प्रयोग करने वेफ परिणाम भयानक भी हो सकते हैं।
इन मसालों-औषध्यिों वेफ विषय में आर्थिक दृष्टि से भी विचार करना चाहिए। इन महँगी वस्तुओं से मानव जाति को कोई लाभ नहीं हो रहा है। वेफवल कठिन परिश्रम से कमाए हुए धन का अपव्यय ही हो रहा है। इसी ध्न का उपयोग साग, सब्जियों, पफल आदि वेफ प्रयोग में कर विशेष लाभ प्राप्त हो सकता है।
इस प्रकार विचार कर यही परिणाम निकलता है कि विभिन्न पदार्थों वेफ विषय में यह प्रशंसात्मक लेख आँख मंूदकर स्वीकार करने योग्य कदापि नहीं हैं। इनवेफ हानि लाभ का भली-भाँति विचार करवेफ ही इनका प्रयोग करना चाहिए। ु
औषधि होते हैं मसाले