बढ़ता प्रदूषण घटती आयु 


हल्की ठंड, मौसम में नमी, हवा की ध्ीमी गति, पराली का  ध्ुंआ और गाड़ियों के ध्ुंए आदि से होने वाला प्रदूषण...... इसके साथ जब हवा में त्योहारों की आपाधपी से उड़ने वाली ध्ूल और पटाखों से निकलने वाला हानिकारक ध्ुंआ भी घुल-मिल जाता है, तो केवल सांस के मरीजों को ही नहीं, सब की सांस घुटने लगती है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार    1 से 10 नवंबर के बीच प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ सकता है। बीते एक सप्ताह में दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर 350 से 450 के पार दर्ज किया जा रहा है, जो बेहद गंभीर की श्रेणी में आता है। पिछले कुछ वर्षों में दिवाली के आसपास प्रदूषण की मार से बीमार लोगों के मामले उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब में भी बढ़ रहे हैं। आंकड़ों की माने तो दिल्ली-एनसीआर के बाद कानपुर, आगरा, लखनऊ, इलाहाबाद, बरेली, पटना आदि शहरों में भी प्रदूषण हानिकारक स्तर तक पहुँच जाता है।
क्यों होती है दिवाली से दिक्कत
 अस्थमा, ब्रोनकाइटिस, पीएएच, एबीपीए और सीओपीडी जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों को इन दिनों दिवाली के प्रदूषण से खासतौर पर बच कर रहना चाहिए। खासकर दिवाली के बाद जिस तरह से प्रदूषण बढ़ता है, उससे सामान्य एलर्जी ब्रोन्काइटिस में बदल जाती है। वातावरण में कार्बन डाइआॅक्साइड के बढने से पफेपफड़ों के मरीजों को सापफ हवा ही नहीं मिल पाती। दवा लेने के बावजूद स्थिति बिगड़ने लगती है। दरअसल, सांस के जरिए जो हवा हमारे पफेपफड़ों तक जाती है, उसके प्रदूषित और ठंडे होने की वजह से हमारी सांस की नली सख्त और संकरी हो जाती है और बेहद खराब स्थिति में अस्थमा का अटैक पड़ जाता है।
पहले बरती जाने वाली सावधनियाँ
 ' अगर आपके शहर में बीते कई दिनों से प्रदूषण खतरनाक ;350 से 400द्ध स्तर तक बना हुआ है, तो कुछ समय के लिए कहीं और चले जाएं और प्रदूषण के सामान्य होने पर ही वापस आएं।
ऐसी किसी जगह जाएं, जहाँ प्रदूषण का स्तर कम से कम 200 के नीचे हो। 
 एन 95 मास्क ही पहनें, लेकिन अगर सांस घुटती है तो सामान्य मास्क सारा दिन लगाएं।
इन्फ्रलूएंजा का वैक्सीन लगवाने का ध्यान रखें। हालांकि वैक्सीन आपको दिवाली के प्रदूषण से नहीं बचाते हैं, लेकिन यह आपकी इम्यूनिटी बढ़ा देते हैं।
 अभी से भाप लेनी शुरू कर दें। सुबह और शाम गरारे करें।
शरीर मंे पानी की कमी बिल्कुल न होने दें। खूब पानी पीते रहें। रसदार पफल खाएं। 
 अपने डाॅक्टर से पहले ही मिल लें।
दिवाली के बाद क्या करें
दिवाली के बाद भी जहरीला ध्ुंआ और गैसें वातावरण में बनी रहती हैं, इसलिए दिवाली की अगली सुबह या कुछ दिनों बाद तक तड़के सुबह घर से न निकलें। दोपहर के बाद ही घर से निकलें।
 दिवाली के बाद भी मास्क पहनें। ज्यादा दिक्कत होने पर गीला रूमाल नाक पर बांध्ें। दमा है तो लगातार देर तक बाहर न रहें।
इन बातों का पर गौर करना भी जरूरी
पफेपफड़े संबंध्ी रोगियों को ओरल हाईजीन का बहुत ध्यान रखना चाहिए। इसलिए जितनी बार इन्हेलर लें, गरारे और अच्छी तरह से कुल्ला जरूर करें। रोजाना गरम पानी से जरूर नहाएं। दरअसल, शरीर पर कुछ हानिकारक बैक्टीरिया होते हैं, जो हर जीवित इंसान पर रोजाना विकसित होते हैं। जो लोग सांस की बीमारी से पीड़ित रहते हैं, वे शरीर में आॅक्सीजन की कमी से रोज नहीं नहा पाते, जिससे बैक्टीरिया बढ़ने लगते हैं और सांस लेेने में दिक्कत होती है। इसलिए रोज गरम पानी से नहाएं।
सर्दियों में जहाँ तक हो गरम पानी ही पिएं।
उत्सव के जश्न के नाम पर शराब और तंबाकू का सेवन न करें, क्योंकि शराब पीने से हमारी श्वास संबंध्ी मांसपेशियाँ सुन्न पड़ जाती हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है।
हिमालयन साॅल्ट लैम्प, बीज वैक्स कैंडल्स, एक्टिवेटिड चाॅरकोल को घर में जगह दें।
इनकी होती है अहम भूमिका
भाप: भाप हमेशा किसी ऐसे बर्तन से लें, जिससे वह सीध आपकी नाक में जाए और गले व छाती को भी सेंक मिलें। नाक से लंबा सांस खींच कर मुँह से निकालें। ऐसा करने से नाक और गले से होते हुए गर्म हवा पफेपफड़ों तक पहुँचती है, जिससे हमारी सांस की नलियाँ नर्म हो कर खुल जाती हैं।
आॅक्सीजन थेरेपी: अगर आप सिलेंडर से आॅक्सीजन लेते हैं, तो दिवाली से पहले और बाद के लिए अतिरिक्त सिलेंडर का इंतजाम पहले से ही कर लें, क्योंकि प्रदूषण का स्तर बढ़ने की वजह से आॅक्सीजन का इनटेक बढ़ सकता है।
मास्क: सामान्य मास्क की तुलना में एन-95 और एन-98 जैसे मास्क ज्यादा कारगर होते हैं, जो 2.5 माइक्रोमीटर से भी बारीक ध्ूल के कणों को रोकने में सक्षम होते हैं। किसी मास्क की प्रभावशीलता उसके आकार, पिफटिंग और आपके प्रयोग के तरीके पर भी निर्भर करती है।
इन्हेलर-नेबुलाइजर: इन्हेलर हमेशा स्पेसर के साथ ही लें, ताकि पूरी दवाई सीध्ी पफेपफड़ों तक पहुँचे। नेबुलाइजर लेते समय मास्क हमेशा सही पिफटिंग का चुनें। हमेशा नाक से लम्बी सांस लें और मुँह से निकालें, ताकि दवा का पूरा पफायदा मिल सके। मास्क नियमित रूप से सापफ करें।
एयर प्यूरीपफायर: एयर प्यूरीपफायर का पिफल्टर हवा में मौजूद ध्ूल-कणों, पोलन, बाल अदि को खत्म कर हवा को सापफ करता है। घर के प्रदूषण से निपटने के लिए डब्ल्यूएचओ भी इसके इस्तेमाल पर जोर देता है।
खान-पान का रखें ध्यान
यदि आप काॅपफी से परहेज नहीं करते, तो उसका सेवन जरूर करें, क्योंकि इसमें मौजूद कैपफीन, ब्रोंकोडायलेटर का काम करता है, जो सांस की नली खोलता है। विटामिन-सी पफेपफड़ों के लिए अच्छा होता है, इसलिए संतरा और आँवला का प्रयोग करें, साथ ही मछली और सूखे मेवों का भी सेवन करें। अलसी में ओमेगा 3 प्रचुर मात्रा में होता है। इससे पफेपफड़ों की सपफाई भी होती है। जंक पफूड, डिब्बाबंद भोजन और मैदे से बनी चीजों के सेवन से बचेें। पफूलगोभी, पत्तागोभी, पालक, टमाटर, अमरूद और पपीते को भी आहार में शामिल करें, क्योंकि इनसे इम्यूनिटी बढ़ती है। अदरक की चाय, हल्दी वाला गर्म दूध् और कभी-कभी लौंग, काली मिर्च, तुलसी, अदरक को मिलाकर बनाया गया काढ़ा भी बहुत लाभकारी होता है। आयुर्वेद के अनुसार, हल्दी और गुड़ जैसी देसी चीजों को खान-पान में शामिल करने से अस्थमा में आराम मिलता है। आुर्वेद भी अस्थमा में विटामिन-सी के सेवन की सिपफारिश करता है, पर यहाँ विटामिन-सी से मतलब आम और नींबू की खटास नहीं है, बल्कि संतरे, मौसमी और आँवले का सेवन लाभदायक माना गया है।
योग करें
कपालभाती, प्राणायाम, भ्रामरी और अनुलोम-विलोम जैसी क्रियाएं हमारे श्वसन तंत्रा को मजबूत बनाती हैं, पफेपफड़ों को मजबूत बनाती हैं और दिल की सेहत को भी दुरुस्त रखती हैं।
ग्रीन पटाखे
 ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधन संस्थान की देन है। इनसे सामान्य पटाखों की तुलना में करीब 40 से 50 पफीसदी तक कम हानिकारक गैसें ;नाइट्रोजन और सल्पफरद्ध निकलती हैं। हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इनसे प्रदूषण बिल्कुल नहीं होगा, लेकिन प्रदूषण का स्तर कम होगा। पटाखों को बनाने में मुख्य रूप से आॅक्सीडाइजर, चारकोल, रंग छोड़ने वाले तत्व और बाइंडर का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें रंगों के लिए लीथियम या बेरियम नाइटेªट का प्रयोग किया जाता है तथा आवाज और गति के लिए पटाखों मे एल्युमीनियम, तांबा, टाइटेनियम जैसे तत्वों का प्रयोग किया जाता है। पटाखों में तांबा और एंटमनी सल्पफाइड की वजह से कैंसर होने की आशंका कापफी बढ़ जाती है। इंडियन चेस्ट सोसाइटी के अनुसार पटाखों के ध्ुंए में सल्पफर डाइआॅक्साइड की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जिसमें श्वास नलिकाएँ सिकुड़ने लगती हैं और ब्रोकियल, अस्थमा और सांस की परेशानियाँ बढ़ जाती हैं।