जरूरी है योग और ध्यान


हमारे देश के साध्ु, महात्माओं और सन्यासियों ने पूरे विश्व में अपनी संस्कृति की उत्तमता का डंका बजवाया हे। इसमें योग, ध्यान ;डमकपजंजपवदद्ध व साध्ना का विशेष योगदान रहा है। विदेशी लोग इससे आकर्षित होते हैं। अगर शु( प्राकृतिक वातावरण में बैठकर प्राणायाम ध्यान करने से शरीर के रोगों से निजात मिलती है तो पिफर एलोपैथिक दवाईयों और आपरेशन की चीरपफाड़ आदि की प्रक्रियाओं से क्यों गुजरना। भारत की इस पहचान को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने के लिए सरकार के प्रयासों से आज 21 जून का दिन 'विश्व योग दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है।
    अगर हम आज के दौर से तीन चार दशकों से पहले की बात करें तो उस समय आज के मुकाबले वायु, जल व ध्वनि प्रदूषण बहुत ही कम था और लोगों के जीवन में भी आज की तहर भागदौड़ व  आपा-धपी नहीं थी। इसी भागदौड़ और उत्तेजना ;ंदगपमजलद्ध से मानव शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। शरीर को जितना आराम, सुकून व नींद आदि मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पाती है। इसी के परिणामस्वरूप लोगों में उच्च रक्तचाप, मध्ुमेह व नाक, कान, गले और मस्तिष्क की विभिन्न व्याध्यिाँ उत्पन्न हो रही हैं। इनमें मनुष्य की अनियमित जीवन शैली व आध्ुनिक खानपान भी कहीं न कहीं महत्वपूर्ण रोल निभा रहे हैं। शरीर की सभी क्रियाओं को नियमित व गतिशील रखने के लिए योग, ध्यान व व्यायाम की क्रियाएँ अत्यध्कि महत्वपूर्ण हो गई हैं। आज के दौर में ये क्यों और भी अध्कि जरूरी हो गई हैं, इसको जानने के लिए हमें निम्नलिखित कारकों को भी जानना आवश्यक है
प्राकृतिक व पर्यावरणीय प्रभाव
    पहले समय में वृक्षों, बागों, वनों और हरे-भरे मैदानों की अध्किता थी जो आजकल के विकास की दौड़ ने बहुत ही संकुचित कर दिए हैं। वृक्षों की अंधध्ंुध् कटाई ने पर्यावरण और जलवायु में बहुत ही बदलाव ला दिया है। वर्षा का कम होना और वह भी समय से ना होना व मौसम व जलवायु में परिवर्तन ने वैश्विक गर्माहट ;ळसवइंस ॅंतउपदहद्ध को बढ़ावा दिया है। पहले दौर में बच्चे व युवा कई-कई घंटे बागों व पेड़ों पर 'काई डंडा' खेलते हुए वृक्षों पर चढ़ना, ऊपर से कूदना व लटकना आदि करते रहते थे जिससे स्वस्थ पर्यावरण में अच्छा खासा व्यायाम होता था। दूसरे गर्मी के दिनों में सुबह दो-तीन घंटे काम करने के बाद सभी दोपहर में खाना खाकर घने छायादार वृक्षों के नीचे सभी इकट्ठे आराम करते व हास्य-विनोद करते थे जिससे वे शारीरिक मजबूती के साथ-साथ मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहते थे। उनका योग ध्यान कम या ना भी करने से काम चल जाता था। लेकिन आजकल सुबह शु(, प्राकृतिक व पर्यावरणीय माहौल में चैन से बैठकर योग, ध्यान करना बहुत ही जरूरी हो गया है। 
प्रदूषण
    शहर हो या गाँव। आजकल पर्यावरण में सभी प्रकार का प्रदूषण बहुत ही अध्कि बढ़ गया है। ध्ूल, गंदगी, ध्ुआँ व शोरगुल में बेतहाशा वृ(ि हो रही है। पहले ये सब बहुत ही कम थे और जो थे उसको वृक्षों की अध्किता सोख कर पर्यावरण की शु(ि बरकरार रखते थे। इसीलिए शान्त वातावरण में बैठकर योग क्रियाएँ व सांसों पर नियंत्राण बहुत ही जरूरी हो गया है जो कि प्राणायाम आदि से ही संभव है।
खानपान की विषमताएं 
पहले सिपर्फ शु( चीजों से निर्मित घर के खाने को ही अध्कि वरीयता दी जाती थी। इससे शरीर के आन्तरिक अंगों को शक्ति मिलती थी और इनमें लचीलापन बरकरार रहता था। अध्कितर दूध्, दही, पफल, हरी सब्जियों का ही खाना होता था। इसके विपरीत आजकल शाकाहारी खाने के बजाय जंक पफूड्स व मांसाहारी खाने का चलन बहुत बढ़ गया है। इससे विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं। इन सबके निदान के लिए योग और ध्यान अध्कि आवश्यक हो गया है।
अति व्यस्त जीवन शैली
    पहले ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में लोग अपने काम से पफारिग होकर शान्त मन से उत्सवों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुत्पफ उठाते थे। चालीस-पचास साल पहले की अगर हम बात करें तो पफसलों की कटाई, उठाई के बाद लोग स्वाँग, ढोला, आल्हा व भजनों आदि का आयोजन करते थे व मन का सुकून महसूस करते थे। लेकिन आजकल मनुष्य ने अपने जीवन को इतना व्यस्त बना लिया है कि किसी के पास पफुर्सत के पल ही नहीं हैं। लोगों की आकाक्षाएँ इतनी बढ़ गई हैं कि अगर किसी को कोई पिफल्म आदि भी देखनी है तो वह भी घर में लाकर उसके साथ दूसरे कुछ काम करते हुए ही देखी जाती है। इस प्रकार काम, काम और काम की अति उत्तेजनाएँ मनुष्य में कई प्रकार की मस्तिष्क, दिल, पफेपफड़ों और दूसरी कई प्रकार की बीमारियाँ पैदा करती हैं। इसीलिए इनकी रोकथाम व निदान के लिए योग, ध्यान व दूसरे व्यायाम की अति आवश्यकता है। जिसको करने के समय तो आदमी कम से कम एक-आध् घंटा शांति से बैठकर करेगा जो शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करते हैं और शरीर के आन्तरिक व बा“य अंगों को सुकून प्राप्त होगा।
    उपरोक्त तथ्यों के आधर पर अगर हम पहले और आज के समय की तुलना करें तो पायेंगे कि पहले समय में आदमी के जीवन में सुकून, अच्छा पर्यावरण, शु( खान-पान व कम प्रदूषण था, अतः बीमारियों की प्रतिरोधत्मक क्षमता भी अध्कि होती थी और बीमारियाँ कम होती थीं। इसके विपरीत आजकल बीमारियाँ भी अध्कि हैं जिनके लिए लगातार योग-ध्यान ;डमकपजंजपवदद्ध व व्यायाम अत्यध्कि आवश्यक है।