प्रदूषण से बचने के लिए बहुत से लोग मास्क का सहारा लेेते हैं, लेकिन ये भी हमारा पूरा बचाव नहीं करते। इस गुलावी ठंडक में आस-पास के बाजार पटाखों से कहीं ज्यादा मास्क और 'रेस्परेटर' ;श्वसन यंत्राद्ध से पटे दिख रहे हैं। ऐसे में, तमाम विकल्पों में से सही को चुनना हमारे लिए खासा मुश्किल हो रहा है। सवाल कई हैं ?क्या सभी मास्क या रेस्परेटर प्रदूषण से हमारी रक्षा करते हैं ?किस प्रकार के मास्क या रेस्परेटर हमारे लिए मुपफीद हैं ?क्या महंगे रेस्परेटर 'डिस्पोजेबल', सर्जिकल मास्क से बेहतर होते हैं ?निस्संदेह, ये सभी कुछ न कुछ हमारी सुरक्षा करते हैं, पर कापफी कुछ इस पर निर्भर करता है कि वे हमारे चेहरे पर किस हद तक पिफट बैठते हैं।
दरअसल, मास्क और रेस्परेटर तरल व वायुमंडलीय सूक्ष्म कणों ;पीएम 10 और पीएम 2.5, दोनोंद्ध को तो छानते हैं, मगर उन्हें ढंग से पहना जाए, तो रेस्परेटर न सिपर्फ गाड़ियों से निकलने वाले उत्सर्जन से हमारी सुरक्षा करते हैं, बल्कि सांस और दिल से जुड़े रोगों का खतरा भी कम करते हैं। और तो और, ये छोटी बूंदों और रोगाणुओं ;वायरस और बैक्टीरियाद्ध को रोककर लोगों को संक्रमण से भी बचाते हैं। एन 95 रेस्परेटर तो वायरस और अन्य संक्रमण का बखूबी सामना करता है, लेकिन वह भी तब, जब इसका दोबारा इस्तेमाल न किया जाए। चूंकि जिन लोगों को सांस या दिल से जुड़ी गंभीर बीमारियाँ हैं, या संक्रमण या सांस लेने में दिक्कतें पैदा करने वाली अन्य समस्याएं हैं, उन्हें रेस्परेटर से सांस लेने में परेशानी हो सकती है। इसीलिए उन्हें उपलब्ध् विकल्पों में से बेहतर चुनाव के बारे में अपने डाॅक्टर से जरूर बात करनी चाहिए।
बाजार में उपलब्ध् मास्क कितने प्रभावशाली हैं, यह जानने के लिए चीन मंे अध्ययन किया गया। इस अध्ययन का नतीजा बताता है कि बाजार में उपलब्ध् ज्यादातर मास्क चेहरे पर पूरी तरह पिफट न होने के कारण सूक्ष्म कणों और काले कार्बन से हमारा बचाव नहीं कर पाते हैं। इनमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित मास्क भी शामिल हैं। यह अध्ययन बीएमजे जर्नल, आॅक्युपेशनल ऐंड एनवायरमेंटल मेडिसिन में अप्रैल 2018 में प्रकाशित हुआ था। इसके लिए अतिसूक्ष्म कणों ;पीएम 2.5द्ध और काले कार्बन से सुरक्षा का दावा करने वाले कुल नौ तरह के मास्क के प्रभावों को जांचा गया था।
मास्क और रेस्परेटर अच्छी तरह से पहनना चाहिए और उसे नाक और मुँह के ऊपर इस तरह पिफट होना चाहिए कि दूषित हवा अंदर लीक न हो। प्रमाणित मास्कों की तुलना में अन्य आम मास्क कम प्रभावशाली होते हैं, क्योंकि वे चेहरे पर पूरी तरह से पिफट नहीं बैठते। इनमें वे मास्क भी शामिल हैं, जो अतिसूक्ष्म कणों को भी पिफल्टर कर सकने वाली सामग्री से बने होते हैं। इतना ही नहीं, कानों में पफंसने वाले मास्क की तुलना में वे मास्क कहीं ज्यादा चेहरे पर पिफट बैठते हैं, जो सिर से पट्टी के सहारे बंध्े होते हैं। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि उच्च गुणवत्ता वाले मास्क भी तभी सुरक्षित होते हैं, जब वे अच्छी तरह से चेहरे पर पिफट बैठ जाएं। इसकी वजह यह है कि मास्क पहनने के बाद लोग गहरी और थोड़ी तेज सांस लेते हैं, जिसके कारण लीकेज होने पर हम कहीं अध्कि प्रदूषित हवा अपने पफेपफड़ों मंे भर लेते हैं।
किसी रेस्परेटर पर यदि 'एन 95' और 'एन 99' दर्ज है, तो इसका मतलब है कि परीक्षण के दौरान उसने क्रमशः 95 पफीसदी व 99 पफीसदी तक महीन कणों ;0.3 माइक्रोनद्ध को रोका है। अगर इन्हें सही ढंग से पहना जाए, तो एन 95 रेस्परेटर सामान्य या सर्जिकल मास्क की तुलना में कहीं बेहतर होते हैं। हालांकि तब भी बाहरी परिस्थिति में प्रदूषण की गिरफ्रत में आने का खतरा बना रहता है। अगर डिस्पोजेबल पिफल्टर साथ उपलब्ध् न हो, तो पफेसमास्क और रेस्परेटर को सिपर्फ एक बार उपयोग करना चाहिए। मास्क का दोबारा इस्तेमाल संक्रमण का जोखिम बढ़ा सकता है, क्योंकि हमारी श्वसन-प्रक्रिया से पैदा होने वाली नमी और गरमी को भी मास्क सोखता है, जो वायुमंडल में मौजूद रोगाणुओं के साथ मिलकर हमें कई तरह से संक्रमित कर सकता है। हालांकि एन 95 और एन 99 सहित कई रेस्परेटर बच्चों या उन लोगों के लिए मुपफीद नहीं होते, जिनके चेहरे पर बाल होते हैं। इसीलिए इनका पूरी तरह पिफट हो जाना भी इनकी सुरक्षा की पूरी गारंटी नहीं।
क्या मास्क के सहारे प्रदूषण से लड़ा जा सकता है