जिन लोगों को साँस की तकलीपफ रहती है, वह इस बदलते मौसम में होने वाली दिक्कतों को अच्छी तरह जानते हैं। वैसे तो साँस लेने में तकलीपफ किसी भी मौसम में हो सकती है। लेकिन सर्दियों में इसका प्रकोप वुफछ ज्यादा बढ़ जाता है। दरअसल सर्दियों में साँस वेफ जरिए जो हवा पेफपफड़ों वेफ भीतर जाती है और बेहद ठंडी होती है। यह ठंडी हवा हमारी साँस की नली को सख्त और संकरा बना देती है। इस वजह से आॅक्सीजन पर्याप्त मात्रा में शरीर को नहीं मिल पाती है और बार-बार साँस पूफलने लगती है, ज्यादा खराब स्थिति में ध्ीरे-ध्ीरे छाती में बलगम भी जमने लगता है और अस्थमा का अटैक पड़ जाता है।
यूँ साँस वेफ रोगों से पीड़ित लोगों को मालूम ही होता है कि बदलते मौसम मंें क्या-क्या सावधनियाँ रखनी चाहिएँ, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यदि इन सावधनियों का सही ढंग से पालन ना किया जाए तो तबीयत सुध्रने की बजाय और बिगड़ सकती है। तो आइए जरा नजर डालते हैं ऐसे ही उपायों पर जो हैं तो बड़े काम वेफ, पर पफायदे सिर्पफ तरीकों से आजमाए जाने पर ही पहुँचाते हैं।
सही तरीवेफ से भाँप लेना
ठंडे मौसम में साँस की तकलीपफ होने पर अकसर डाॅक्टर स्टीम या भाप लेने की सलाह देते हैं। यह बेहद प्रभावी तरीका है, पर सबसे अधिक नजरअंदाज भी इसे ही किया जाता है। जो लेते भी हैं, उनमें से भी कई को सही तरीवेफ की जानकारी नहीं होती। भाप हमेशा किसी ऐसे बर्तन से लें, जिससे वह सीध आपकी नाक में ही जाए। आजकल इसवेफ लिए बाजार में अच्छे स्टीमर मिलते हैं। जो बिजली से चलते हैं। इनमें पानी भर कर सिर्पफ नाक वेफ पास लाना होता है और भाप नाक द्वारा सीध्े पेफपफड़ो में चली जाती है।
भाप लेते समय पतले तौलिये से सिर ढक लेना चाहिए। उसवेफ बाद नाक से लम्बा साँस खींच कर मुँह से बाहर निकालना चाहिए। ऐसा करने से नाक और गले से होते और गर्म हवा पेफपफड़ों तक पहुँचती है। इस गर्म भाप से साँस की नलियाँ गर्म हो कर खुल जाती है। अगर नीलगिरी ;युकालिप्टिसद्ध वेफ पत्ते पानी में डाल कर स्टीम ली जाये तो वह ज्यादा पफायदा पहुँचाती है। पानी में चुटकी भर नमक डाल देने से स्टीम तेजी से बनती है और आमतौर पर लगभग दस मिनट भाप लेना पर्याप्त होता है। उसवेफ बाद एकदम से ठंडी या हवा में न जाएँ और वुफछ देर कोई पतली चादर सिर और गले पर लपेटकर ही बैठे रहें।
इन्हेंलर, नेबुलाइजर का सही तरीका
साँस की तकलीपफ में खाने वाली दवाओं की तुलना में इन्हेंलर और नेबुलाइजर ज्यादा असरदार होते हैं इसवेफ लिए भी सही तकनीक की जानकारी होना बेहद जरूरी है। और इन्हेंलर सबसे प्रभावी तरीका माना जाता है। कारण है कि हवा सीध्े पेफपफड़ों तक पहुँच जाती है। पर इन्हेंलर हमेशा स्पेसर वेफ साथ ही लेना चाहिए। स्पेसर एक प्रकार का प्लास्टिक यंत्रा होता है, जिसवेफ एक सिरे पर इन्हेलर लगाया जाता है और दूसरे हिस्से पर अपना मुँह लगाकर इन्हेलर दबा कर तेजी से साँस अंदर खींचनी होती है। इससे दवा मुँह से निकलती नहीं और सीध अंदर जाती है। जब साँस पूरी अंदर ले लें तो वुफछ सेकेंड रोककर रखें। ऐसा करने से दवा अच्छी तरह से अपना असर दिखाती है। पिफर ध्ीरे-ध्ीरे साँस छोड़े और वुफल्ला करवेफ दोबारा इसी प्रव्रिफया को दोहराएँ। इन्हेंलर वेफ साथ मिलने वाले चिकित्सा निर्देशों में स्पेसर वेफ सही इस्तेमाल का तरीका भी बताया गया होता है।
इसी प्रकार नेबुलाइजर लेते समय मास्क हमेशा सही पिफटिंग का चुनें। हर बार नाक से लम्बी साँस लेें और मुँह से निकालें और ताकि दवा का पूरा पफायदा मिल सवेंफ। लगभग दस बार इस प्रव्रिफया को दोहराने के बाद इसे उलटा कर दें। मतलब मुँह से लम्बी-लम्बी साँस लेकर नाक से छोड़ें। मास्क को नियमित रूप से सापफ करना बेहद जरूरी है, जिसवेफ लिए किसी साबुन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। किसी बर्तन में हल्का गुनगुना पानी लेकर वुफछ देर मास्क उसमें डाल दें। और पिफर निकाल कर अच्छी तरह सुखा लें।
खुद डाॅक्टर न बनें
देखा गया है कि जिन लोगों को तकलीपफ रहती है, और वे मौसम बदलने या थोड़ी तकलीपफ बढ़ने पर खुद से ही अपनी नियमित दवा की मात्रा घटाने-बढ़ाने लगते हैं। ऐसा बिल्वुफल भी नहीं करना चाहिए। दवा की डोज वेफ मामले में खुद वेफ डाॅक्टर न बनंे और रोज एक डोज घटाए और बढ़ाए नहीं। दरअसल दवा की डोज घटाने-बढ़ाने से पहले चिकित्सक मरीज की वुफछ जाँच करवाना या उसका परीक्षण करना जरूरी समझते हैं। वह जाँचते हैं कि छाती में बलगम किस स्तर तक जमा हुआ है। स्पाज्म वैफसा है? साँस लेते समय किसी तरह की आवाज आ रही है? क्या उठने बैठने पर भी साँस पूफल रही है आदि लक्षणांे वेफ आधर पर वह एक निश्चित समय वेफ लिए वुफछ नई दवाओं वेफ साथ नियमित दवा की खुराक को घटाते-बढ़ाते हैं। खासकर बच्चों वेफ मामले में विशेष एहतियात बरतें।
मास्क खरीदते समय ध्यान दें
सर्दी वेफ मौसम में प्रदूषण का स्तर कई गुना ब़ढ जाता है, ऐसे में साँस लेना और भी कठिन हो जाता है। प्रदूषण से बचने वेफ लिए मास्क का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन सही जानकारी वेफ अभाव में कोई पफायदा नहीं हो पाता। बाजार में कई प्रकार वेफ मास्क उपलब्ध् हैं। जैसे सर्जिकल मास्क, एन-सिरीज मास्क, आर सिरीज मास्क। सस्ते कपड़े से बने मास्क जहाँ लगभग 10 से 15 प्रतिशत तक ही सुरक्षा प्रदान कर पाते हैं वहीं एन-95 और एन-98 जैसे मास्क बहुत ज्यादा कारगर होते हैं। इस प्रकार वेफ मास्क 25 माइव्रफोमीटर से भी बारीक ध्ूल वेफ कणों को रोकने में सक्षम होते हैं। क्योंकि यही वो महीन कण होते हैं, जो पेफपफडों की गहराई में जाकर नुकसान पहुँचाते हैं। हालांकि जिन लोगों को पहले से ही साँस लेने में परेशानी होती है, उन्हें इन मास्क को लगाने से साँस लेने में थोड़ी बहुत कठिनाई भी होती है। इसवेफ अलावा लोग अकसर ध्ूल से बचने वेफ लिए रूमाल मुँह पर बाँध् देते हैं। लेकिन यह भी बहुत सीमित रूप से बचाव करता है। पिफटिंग और आपवेफ इस्तेमाल वेफ तरीवेफ पर भी निर्भर करती हैं मास्क हमेशा अच्छी पिफटिंग का और कसा हुआ ही होना चाहिए। इसवेफ अलावा प्रत्येक मास्क लगाने से साँस लेने में ज्यादा तकलीपफ होती है। ऐसा होने पर अपने डाॅक्टर से सलाह लेकर भी मास्क का चुनाव करें।
एयर प्यूरीपफायर भी है उपयोगी
साँस पूफलने का सीध संबंध् उस हवा से है, जिससे हम साँस लेते हैं। लेकिन प्रदूषण की मार की वजह से हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि स्वस्थ लोगों को भी साँस लेने में परेशानी होने लगी है। मास्क कापफी हद तक काम करते तो हैं लेकिन उन्हें हर वक्त लगा वेफ रखना संभव नहीं होता। ऐसे हालात में एयर प्यूरी पफायर कापफी उपयोगी साबित होते हैं। शोध् बताते हेैं कि घर वेफ अंदर की हवा बाहर की हवा से लगभग चार गुना ज्यादा जहरीली हो सकती है। इसलिीए आजकल एयर प्यूरीपफायर कापफी चलन में आ गए। इसमें सब वुफछ मशीन में लगे पिफल्टर पर निर्भर करता है। यह पिफल्टर हवा में मौजूद ध्ूल वेफ कणांे, पोलन, बाल आदि को खत्म कर हवा को सापफ करता है। लेकिन आपको अपने कमरे वेफ आकार वेफ हिसाब से ही प्यूरीपफायर खरीदना चाहिए। क्यांेकि एक नियत समय वेफ बाद इनका पिफल्टर बदलना भी बहुत जरूरी होता है। हालांकि डाॅक्टर अभी तक इस बात से भी पूरी तरह सहमत नहीं हैं कि यह एयर प्यरीपफायर वास्तव में पूरी तरह कारगर हैं भी या नहीं। पिफर भी इनसे कापफी हद तक अपने आसपास की हवा को सापफ किया जा सकता है।
साँसों को रखें संभालकर