प्रवृफति और मनुष्य


प्रवृफति और मनुष्य वेफ बीच बहुत गहरा संबंध् है। दोनांे एक-दूसरे वेफ पूरक है। मनुष्य वेफ लिए ध्रती उसवेफ घर का आँगन, आसमान छत, सूर्य-चाँद तारे दीपक, सागर-नदी पानी वेफ मटवेफ और पेड़-पौध्े आहार वेफ साध्न है। इतना ही नहीं, मनुष्य वेफ लिए प्रवृफति से अच्छा गुरु नहीं है। आज तक मनुष्य ने जो वुफछ हासिल किया है। वह सब प्रवृफति से सीखकर ही किया है। न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिकों को गुरुत्वाकर्षण समेत कई पाठ प्रवृफति ने सिखाएँ है तो वहीं कवियों ने प्रवृफति वेफ सानिध्य में रहकर एक से बढ़कर एक कविताएँ लिखीं। इसी तरह आम आदमी ने प्रवृफति वेफ तमाम गुणों को समझकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव किए।
दसअसल प्रवृफति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे-पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। इस पाठ को जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में आत्मसात किया उसे असपफलता से कभी डर नहीं लगा। ऐसे व्यक्ति अपनी हर असपफलता वेफ बाद विचलित हुए बगैर नए सिरे से सपफलता पाने की कोशिश करते हैं। वे तब तक ऐसा करते रहते हैं। जब तक सपफलता उन्हें मिल नहीं जाती। इसी तरह पफलों से लदे, मगर नीचे की ओर झुवेफ पेड़ हमें सपफलता और प्रसि(ि मिलने या संपन्न होने वेफ बावजूद विनम्र और शालीन बने रहना सिखाते हैं। उपन्यासकार प्रेमचंद वेफ मुताबिक साहित्य में आदर्शवाद का वही स्थान है, जो जीवन में प्रवृफति का है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह हे कि प्रवृफति में हर किसी वेफ लिए उपयोगी है, जबकि मत्स्यपुराण में एक वृक्ष को सौ पुत्रों वेफ समान बताया गया है। इसी कारण हमारे यहाँ वृक्ष पूजने की सनातन परंपरा रही है। पुराणों में कहा गया है कि जो मनुष्य नए वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षों तक पफलता पूफलता है, जितने वर्षों तक उसवेफ लगाए वृक्ष पफलते-पूफलते हैं।
प्रवृफति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती। जैसे नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने पफल खुद नहीं खाते, पूफल अपनी खुश्बू पूरे वातावरण में पैफला देते। इसका मतलब यह हुआ कि प्रवृफति किसी वेफ साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रवृफति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है तब उसे गुस आता है। जिसे वह समय-समय पर सूखा, बाढ़, सैलाब, तूपफान वेफ रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है।