जल जीवन की प्राथमिक आवश्यकता हैं प्रवृफति ने मनुष्य को ग्लेशियरों और अन्य ड्डोतों से निकलती नदियों और विशाल झीलों वेफ रूप में प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध् कराया है। इसवेफ अलावा वर्षा वेफ रूप में भी विशाल जलराशि मनुष्य को प्राप्त होती रहती है, जिसे गहन वनों द्वारा अवशोषित करवेफ भूगर्भ में पहुँचा दिया जाता है। यह जल बाद में निरन्तर उपयोग वेफ लिए प्राप्त होता रहता है। नदियों और झीलों का जल भी रिसकर भूगर्भीय जल में अभिवृ(ि करता रहता है। पुराने जमाने वेफ बु(िमान मनुष्यों ने गाँवों व शहरों में बड़ी मात्रा में तालाबों की व्यवस्था की थी, जो वर्षा-जल को संग्रहित करवेफ जल की उपलब्ध्ता सुनिश्चित करते थे। भारतीय मनीषियों ने तो इसीलिए वृक्ष, वन, नदी, जल आदि को देवता मानकर उन्हें पूजनीय बनाया था ताकि इनवेफ प्रति सम्मान का भाव रखते हुए इनवेफ दुरफपयोग से बचा जा सवेफ। इन व्यवस्था वेु चलते कोई कारण न था कि जीवों को जल की कमी से जूझना पड़ता।
पिफर भी आज देश वेफ तमाम क्षेत्रा जल की भीषण कमी से जूझ रहे हैं। यह सब मनुष्य की असंवेदनशीलता और प्रावृफतिक संसाध्नों वेफ अत्याध्कि दोहन की लालची प्रवृत्ति वेफ चलते हुआ हैं लकड़ी वेफ लिए वनों का अँधध्ुँध् कटान हुआ जिससे न वेफवल वर्षा-जल वेफ भूगर्भ तक पहुँचने में व्यवधन उत्पन्न हुआ, वरन पहाड़ों से मिट्टी वेफ बहकर आने से ;वृक्षों की जड़े ही मिट्टी को रोकती हैंद्ध नदियों का तल उँफचा होने लगा और उनकी जलसंग्रह-क्षमता बेहद घट गई। वनों से होने वाला वाष्पीकरण कम हुआ, आॅक्सीजन की मात्रा घटने लगी, जिसका परिणाम कम वर्षा वेफ रूप में में प्राप्त हुआ। जमीनों की बेतहाशा बढ़ती कीमतों ने शहरों वेफ साथ ही गाँवों में भी भूमापिफया संस्वृफति का विकास किया। राजनेताओं वेफ संरखण में तमाम तालाबों को भरकर उनकी जमीन कब्जा ली गई और वुफछ ही सालों में देश वेफ लाखों तालाब गायब हो गए। नदियों वेफ किनारों पर भी अतिव्रफमण करवेफ उनवेफ पाट कम कर दिए गए। साथ ही शहरों का कचरा नदियों में प्रवाहित किया जाने लगा। ध्ीरे-ध्ीरे जीवनदायिनी नदियाँ वूफड़े का बोझ ढोते-ढोते दम तोड़ गई और आज अध्किांश नदियों का जल पीना तो दूर नहाने तक वेफ योग्य नहीं रह गया है।
भूगर्भ-जल का भी अँधध्ँुध् दोहन होता रहा है और निरंतर हो रहा है। जहाँ आज जल की उपलब्ध्ता है, वहाँ का कल की चिन्ता से गापिफल इन्सान पानी वेफ इस्तेमाल वेफ प्रति बिल्वुफल भी संवेदनशील नहीं है। दूसरे क्षेत्रों से पानी की बूँद-बूँद को तरसते लोगों की खबरें भी उसे चिन्तित नहीं करती और कल किसने देखा है वेफ भाव से वह पानी को बर्बाद करने में लगा हुआ है। आज देश में दूर-दराज वेफ ग्रामीण इलाकों की तो छोड़िए, अनेकोें महानगर भी जल की भयानक कमी से जूझ रहे हैं। कई इलाकों में रेलगाड़ियों से पानी पहुँचाने की खबरें आ रही हैं। देश भर में भूगर्भ-जल का स्तर नीचे जा रहा है और आसन्न संकट की ओर इशारा कर रहा है। पानी की निरन्तर कमी से सरकारों वेफ माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं और पुरानी तालाब संस्वृफति को पुनजीर्वित करने वेफ लिए बाध्य होना पड़ा है। निःसंदेह तालाबों की ओर लौटना जल संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि पहले की तरह ही तालाब कब्जे का शिकार न बच जाएँ। तालाबों की सुरक्षा वेफ लिए ऐसे कठोर कानून बनाने होंगे कि कब्जा करने की सोचने से पहले ही कोई काँप उठे। तालाबों की देखरेख वेफ लिए अध्किार प्राप्त सुरक्षा-संगठन हो, जिन्हे अवसर पड़ने पर पुलिस-प्रशासन का पूरा सहयोग मिले।
यदि पूरी निष्ठा वेफ साथ देश भर में तालाबों की प्राचीन संस्वृफति को पुनजीर्वित किया जाता है तो यह भविष्य वेफ लिए शुभ परिणाम देने वाला कदम होगा क्योंकि इससे वर्षा वेफ बेकार बह जाने वाले जल वेफ संग्रह का मार्ग प्रशस्त होगा और यही जल भूगर्भ- जल स्तर को बढ़ाने में भी योगदान देगा।
तालाबों वेफ संरक्षण की नई पहल