प्रवृफति का सम्मान करना अपने आप में पूजा है। पर्यावरण संकट का एक बड़ा कारण प्रवृफति वेफ प्रति मनुष्य का दुव्र्यवहार भी है। आज पूरी दुनिया पर्यावरण को लेकर जिस मुसीबत में है, उसे दूर करने वेफ लिए अब सारे संसार को भारतीय संस्वृफति का वह पहलू याद आ रहा है जिसमें वृक्षों वेफ प्रति श्र(ा का भाव रखा गया है। पहले सारी दुनिया भारत की इस प्रवृत्ति को दकियानूसी मानती थी। किंतु अब सभी ने स्वीकार कर लिया है कि वृक्षों में प्राण होते हैं और उनकी सुरक्षा की जानी चाहिए। इसका बहुत अच्छा संदेश गौतम बु( ने दिया था। 2500 वर्ष पूर्व उन्हें वृक्ष वेफ नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई। वह वृक्ष पीपल का था। तब से वह ‘बोधिवृक्ष’ कहलाया।
वेफवल संतों ने ही नहीं, सत्ताधीशों ने भी बाद में इस वृक्ष की पूजा की थी। सम्राट अशोक ने तो भारत वेफ अतिरिक्त सभी पड़ोसी देशों में बोधिवृक्ष की शाखाएँ लगवाकर इसका खूब प्रचार-प्रसार किया था। उसी समय से इस वृक्ष वेफ पूजन और शृंगार की परम्पराएँ भी पड़ गई थीं। अशोक वेफ बाद कई राजाओं ने भी अपने खजाने में से बहुमूल्य रत्न वृक्षों को अर्पित किए थे। पीपल समूची वृक्ष जाति का प्रतिनिधि वृक्ष है। सभी वृक्षों की कोई न कोई विशेषता है। लेकिन पीपल की सबसे बड़ी विशेषता है कि यदि हवा बिल्वुफल नहीं चल रही हो तो अन्य वृक्षों वेफ पत्ते स्थिर हो जाते हैं, किंतु पीपल वेफ पत्ते हिलते-डुलते रहते हैं, इसीलिए इसे ‘चल वृक्ष’ भी कहा गया है।
बु( वेफ बाद अनेक संतों ने वृक्षों से प्राप्त होने वाले विशेष भावों का महत्व बताया है। बु( से जब एक बार पूछा गया था कि आपको ज्ञान प्राप्ति में कौन-कौन सहायक रहे, तो बु( ने महत्वपूर्ण भूमिका बोधिवृक्ष की भी बताई थी और यह तय है कि सभी वृक्ष भौतिक और आध्यात्मिक उफर्जा प्रदान करने वाले हैं।
पौधें की उपयोगिता जानें
पेड़-पौध्े वेफ अनगिनत लाभों से हम सब वाकिपफ हैं लेकिन वुफछ पौध्े ऐसे भी होते हैं जो कीटों को दूर रखने में इंसानों की मदद करते हैं। इनकी यह खूबी इनवेफ औषध्ीय गुणों वेफ चलते हैं। इसवेफ चलते ये इंसानों वेफ लिए बेहद लाभकारी है।
तुलसी: घर में इसे लगाने से मक्खियाँ और मच्छर दूर रहते हैं। सर्दी-जुकाम में यह बेहद लाभकारी है। साथ ही सलाद वेफ रूप में भी इसे इस्तेमाल करने से यह इसका स्वाद कई गुणा बढ़ा देती है।
लैवंेडर: पतंगे, मक्खी और मच्छर इससे दूर भागते हैं। सदियों में इसका इस्तेमाल घर और अलमारियों को खुश्बूदार बनाने में किया जाता रहा है, इसवेफ पौध्े को बगीचे वेफ उस हिस्से में लगाएं जहाँ सूर्य की पर्याप्त रोशनी मिलती है।
पुदीना: इसे गमले में लगाएँ। मच्छरों को भगाने में बेहद कारगर है। बगीचे में लगाने से बचें। दरअसल जमीन में लगाने से यह कापफी रफ्रतार से पैफलता है और इसे निकालना बेहद मुश्किल हो जाता है।
मेंहदी: इसका पौध विभिन्न प्रकार वेफ कीटों को दूर भगाता है। इसे गमले में लगाकर सजावटी पौध्े की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी कटाई-छटांई विभिन्न आकार में की जा सकती है।
वुफछ ऐसे भी पेड़-पौध्े होते हैं जो पर्यावरण को दीर्घकालिक नुकसान पहुँचाते हैं। इनमें से वुफछ तो विदेशी प्रजातियाँ हैं जो देश वेफ विभिन्न हिस्सो में पनपती है। इनवेफ बारे में लोगों को कम ही जानकारी होती है। इन पर एक नजर
यूवेफलिप्टस ;सपेफदाद्ध: दलदल सुखाने वेफ लिए 1870 में अंग्रजों ने इसका प्रयोग शुरू किया। 700 से अध्कि प्रजातियों वाले इस पौध्े की कई प्रजाजियाँ पर्यावरण वेफ लिए नुकसानदायक होती हैं। यह पेड़ तेजी से जलस्तर को कम करता है। इसकी जड़े बड़ी मात्रा में पानी को अवशोषित करती है और जलस्तर गिरने का संकट उत्पन्न होने लगता है।
सुबबूल: देश वेफ 21 राज्यों में पाए जाने वाले यह पौध मेक्सिकों से 19वीं सदी में लाया गया था। यह पौध किसी भी मौसम और किसी भी स्थान में उग सकने में सक्षम है। यह पौध किसी दूसरे पौध्े को अपने आसपास पनपने नहीं देता।
विलायती बबूल ;काबुली कीकरद्ध: करीब 13 राज्यों में यह पौध पाया जाता है। 1870 में इस पौध्े को देश में लाया गया था। यह कापफी तेजी से विकास करता और आसपास की जमीन पर पूर्ण रूप से कब्जा कर लेता है। इसवेफ बीज भी तेजी से पैफलते हैं। जिससे यह भी दूसरे क्षेत्रों में पनपने लगता है।
अवेफसिया: दस से अध्कि राज्यों में पाया जाता है। 19वीं सदी की शुरूआत में इसे आॅस्ट्रेलिया से लाया गया था। यह तेजी से अपनी काॅलोनी बनाता है। इसवेफ कारण देशज पौध्े पनप नहीं पाते हैं।
पेड़-पौधें की उपयोगिता समझें