जानिए! क्या है प्कोरोना वायरस की महामारी से ग्रस्त मरीजों के उपचार को लेकर शुरुआती दौर में जो भी दवाएँ पद्धति या तरीकों को अपनाने की होड़ मची, वे सभी एक-एक कर नाकाम होती दिख रही हैं। ऐसे में अब सारी आशा कोरोना वायरस के टीका बनाने की की तैयारियों पर टिक गई हैं। वहीं शोधकर्ताओं ने वायरस को लेकर चेतावनी दी है कि जब तक टीका विकसित नहीं होगा, तब तक दुनिया पुरानी सामान्य स्थिति में नहीं लौट सकतीदूसरे रोगों की दवाएँ कारगार नहीं _हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) : दुनिया ने मलेरिया की इस दवा को चमत्कारिक माना। अमेरिका ने 7 अप्रैल 2020 को तीन करोड़ टन एचसीक्यू मंगा ली, जिसमें एक करोड़ भारत से थी। यूएई को 55 लाख टॅबलेट के साथ भारत ने 55 देशों को इसका निर्यात किया। सुरक्षित नहीं : विश्व की शीर्ष एजेंसी एफडीए ने 24 अप्रैल 2020 को कहा कि एचसीक्यू का कोई लाभ नहीं है, यह कोरोना में कारगर नहीं है, उल्टे दिल की धड़कन तेज कर खतरा पैदा करती है। रेमेडिसिवर : इबोला की दवा रेमेडिसिवर के लिए भी होड़ दिखी। दवा निर्माता गिलाड साइंस के लीक नतीजों से खुलासा हआ कि यह कोरोना के इलाज में फेल हई। __कोविड-19 के खिलाफ छिडी जंग में प्लाज्मा थेरेपी की इन दिनों खूब चर्चा है, तो कोई आश्चर्य नहीं। दिल्ली व केरल के कछ अस्पतालों में प्लाज्मा थेरेपी से उपचार के अनकल संकेत मिले हैं. जिनका हमें न केवल स्वागत. बल्कि चिकित्सकीय परीक्षण भी जारी रखना चाहिएचूँकि कोविड-19 नई बीमारी है. इसलिए इलाज की प्लाज्मा पद्धति को सोलह आना सटीक सिद्ध करने में वक्त लग सकता हैइंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कोरोना के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को सीमित मंजरी दे रखी है मगर डग कंटोलर जनरल ऑफ इंडिया ने इसे मान्यता नहीं दी है। इस पद्धति से ठीक होने वालों का ऐसा उच्च प्रतिशत चाहिए जो डॉक्टरों को आश्वस्त कर सकेअभी इस पर सफलता की महर नहीं लगी है. हाँ. उपलब्ध संकेत अच्छे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी स्वयं आगे आकर लाज्मा थेरेपी बताया है कि प्लाज्मा थेरेपी का लाभ लेने वाले मरीजों की सांस की गति भी सुधरी है, और ऑक्सीजन स्तर भी। वैसे प्लाज्मा थेरेपी कोई नई तकनीक नहीं है। करीब 70 वर्ष से चली आ रही इस थेरेपी का हाल के वर्षों में सार्स. स्वाइन फ्ल. इबोला जैसी बीमारियों में प्रयोग हुआ है। कोरोना के इलाज में भी यह पद्धति सफल होती है, तो कोरोना संक्रमण से उबरने वाले लोग ही इस महामारी के विरुद्ध युद्ध में सबसे ज्यादा काम आएंगेठीक हो चुके लोगों के शरीर में मौजूद कोरोना का अंत करने वाले एंटीबॉडी तत्व ही इसकी दवा का काम करने लगेंगेजिस प्लाज्मा की ओर हम उम्मीद से देख रहे हैं, वह हमारे रक्त का ही एक हिस्सा है। आमतौर पर रक्तदान चार तरह के होते हैं। सामान्य रक्तदान, लाल रक्त कोशिका दान, प्लेटलेट दान और प्लाज्मा दान। प्लाज्मा का इस्तेमाल किसी के जलने, सदमे में होने, आघात और अन्य अनेक चिकित्सा आपात स्थितियों के समय नया जीवन देने के लिए किया जाता है। प्लाज्मा हमारे रक्त का सबसे बड़ा हिस्सा है। हल्का पीला तरल प्लाज्मा एंटीबॉडी के साथ पानी लवण, एंजाइम और कुछ अन्य तत्वों को वहन करता है। प्लाज्मा की मुख्य भूमिका पोषक तत्वों, हार्मोन और प्रोटीन को शरीर के उन हिस्सों में ले जाना है, जहाँ उनकी जरूरत है। ऐसे में कोरोना के जो मरीज बहुत विकट स्थिति में पहुँच गए हैं, उनको बल देने के लिए प्लाज्मा की भूमिका निस्संदेह होगी, लेकिन कितनी होगी, यह लगातार परीक्षण से ही पता चलेगा। यहाँ एक सहज सवाल है, किसी उपचार पद्धति में अगर थोडी भी संभावना दिख रही है, तो हम किसी मरीज के विकट स्थिति में पहुंचने का इंतजार क्यों करें? संभव है, समय रहते इस थेरेपी को आजामाया जाए, तो नतीजे ज्यादा कारगर हों। यह सुखद है कि देश में लगभग 6,000 लोग ठीक हो चुके हैं, उनकी मदद से ठीक होने वालों की पूरा शृखला बनाई जा सकता ह। बहरहाल, अभा यहा साबित नहा हुआ है कि एक बार जिसे कोरोना हो गया, उसे फिर नहीं होगा. इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने डॉक्टरों को सावधान किया है। वाकई, सावधानी की जरूरत कदम-कदम पर है। लेकिन इतना तय है कि प्लाज्मा थेरेपी के रूप में हमारे तरकश में एक बाण है. उम्मीद कीजिए की यह रामबाण सिद्ध हो।
जानिए! क्या है प्लाज्मा थेरेपी