मेरी प्रेरणा : प्रकृति मंथन


रजनी शर्मा



वैसे तो हमें इस कोरोना महामारी ने बहुत कुछ सिखा दिया हैं। परंतु इन्हीं दिनों प्रकृति मंथन पत्रिका पढ़ने का अवसर मिला, जिसमें मुझे एक लेख पढ़ने को मिला, 'नन्हीं गौरैया' इस लेख से मुझे बहुत प्रेरणा मिली, कि हम जीवजन्तु, पशु-पक्षी अथवा प्रकृति की ओर उतना ध्यान नहीं देते, जितना समय हम अपने आप पर देते हैं। बस मैंने यही सोचकर विलुप्त हुई गौरैया के लिये थोड़ा समय दिया। कहते हैं कि अगर हम कुछ अच्छा करते हैं तो उसका फल हमें जरूर मिलता है। मेरे बगीचे में वैसे तो ज्यादा पेड़ नहीं थे, बस कुछ झाड़ियाँ, नींबू, मीठा नीम, गुड़हल जैसे वृक्ष लगाये थे।और जब ये कुछ बड़े हुए तो उनके बीच में पक्षियों के इन्तजार में पानी दाना, बिस्कुट, भुजिया रखनी शुरु कर दी। टी चिड़ियों ने आना शुरू कर दिया। वे आती, बैठती, दाना खाती और चली जातीं। उनकी आवाज मुझे बहुत अच्छी लगने लगी। मैं रोज दाना पानी रखती। ये सब देखते-देखते उन्होंने एक दिन वहाँ अपना घौंसला बना लिया। शायद एक महीना लगा घौंसला बनाने में या शायद कुछ ज्यादा। जब चिड़िया का काम पूरा हुआ तो एक उस काली प्यारी सी चिड़िया ने चार अंडे दिये। धीरे धीरे अंडों से बच्चे बाहर आ गए। चिड़िया रोज अपने बच्चों के लिए दाना लेने जाती और आकर उन्हें खिलाती। देखते-देखते बच्चे बड़े हो गये। हालाँकि एक बच्चा उनमें से मर गया, मगर बाकि तीन बच्चे जिन्दा थे। जब जब बच्चे अपने घौंसले से बाहर झाँकते तो मुझे बहुत अच्छा लगता। मैं भी छुप-छुपकर उन्हें देखती। फिर तो कुछ दिन में वो हमारे आंगन में आकर चहचहाने लगेउनकी वजह से आज न जाने कितनी ही चिडिया आने लगीं। लॉकडाउन होने पर जो गलियां सूनी पड़ी थीं उनमें रौनक लौट आई। लॉकडाउन कब खत्म हो गया पता ही नहीं चला। ये प्रकृति वास्तव में कितनी सुन्दर है। जिस परमात्मा ने हमें ये सुन्दर प्रकृति के उपहार को सजाकर दिया है अगर हम उस परमात्मा के उपहार की थोडी सी कद्र कर लें, उसके दिए उपहार को थोड़ा सा अपना वक्त, थोडा सा अपना प्रेम, थोड़ी सी मेहनत दें तो इन जीव-जन्तुओं को तो अच्छा लगेगा ही साथ ही परमात्मा को भी कितना अच्छा लगेगा. जिसने इनको बनाया है। जब हमारे माता-पिता एक सुन्दर सा घर बना कर देते हैं, तो वे कहते हैं कि हमारा जीवन सफल हो गया। उनके आनन्द की कोई सीमा नहीं होती। यही वो प्रेम है, यही वो आनन्द है जो हमें इस प्रकृति ने दिया है। बस इस आनन्द को हम कैसे लौटाएं, हमें यही समझना होगा। ...तो फिर चलें एक बार फिर से बुलायें और सब मिलकर कहें, 'आओ! लौट आओ!! नन्हीं गौरैया' हम संकल्प लेते हैं कि कभी तुम्हारे घौंसले नहीं तोड़ेंगे और न ही हम तुम्हें अपने घर से निकालने पर विवश करेंगे। आओ! लौट आओ!! आओ लौट आओ!!