रामबाण औषधि है: योग


राजकुमारी चौकसे



मनुष्य जहाँ यह चाहता है कि सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए उसके पास पर्याप्त धन-ऐश्वर्य हो, समाज में उसकी मान-प्रतिष्ठा हो, वहीं उसकी यह भी प्रबल इच्छा रहती है कि उसका शरीर निरोग रहे और वह दीर्घजीवी हो। इसलिए हम यदि अपने स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाकर अपनी आयु को बढ़ाना चाहते हैं तो दो बातों पर ध्यान देना होगा-आहार और व्यायाम। ___यदि शरीर का विश्लेषण किया जाए तो हमें उसका कार्य कई विभागों में बँटा हुआ मिलेगा, जो अपना-अपना कार्य शारीरिक संवधिान के अनुरूप करते हैं। पर इसके लिए भी शारीरिक विकास के नियमों को जानने हेतु रचना और क्रिया-विधि को भली-प्रकार समझ लेना अत्यंत आवश्यक है। आज की तेज रफ्तार जिंदगी में ऐसे अनेक पल आते हैं, जो जीवन की गति पर विराम लगा देते हैं, थकान व चिडचिडेपन को जन्म देते हैं, जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त सा हो जाता है। तो ऐसा क्या करें कि हमारा शरीर ऊर्जावान बना रहे? आज जिसकी सर्वाधिक चर्चा है वो है-योग, जिसे विश्व योग दिवस के रूप में मनाए जाने के लिए भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र में ये प्रस्ताव रखा था और थोड़े ही समय में 116 देशों ने इसे स्वीकार करते हुए पारित किया। अर्थात् आज पूर्ण विश्व योग को उत्साह से मना रहा है। भारतीय योग जानकारों के अनसार योग की उत्पत्ति आज की नहीं बल्कि लगभग 5000 वर्ष पूर्व हुई थी। 1120 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने 'सिंधु सरस्वती' सभ्यता को खोजा था, जिसमें प्राचीन हिन्दू धर्म और योग की तपस्या होने के प्रमाण मिलते हैं। उपनिषद् में बहुत से प्रमाण, संसार की प्रथम पुस्तक 'ऋग्वेद' में योगासन का उल्लेख भी मिलता है। योग क्या है? योग यानि स्वयं से जुड़ाव। योग विश्वासों का नहीं है ये जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है इसलिए योग आस्तिक-नास्तिक की भी चिंता नहीं करता। योग चित्त की वृत्तियों को रोकता है। वृत्तियों के रुक जाने पर आत्मा अपने स्वरूप में स्थिर हो जाती है। योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है, इसमें व्यक्ति का केवल दैहिक पहलू ही शामिल नहीं होता अपितु आध्यात्मिक और मानसिक पक्ष भी निहित होते हैं। योग का प्रथम सत्र जीवन ऊर्जा. और ऊर्जा के भी दो रूप हैं और जो व्यक्ति इन दोनों रूपों को समझ लेता है, वह योग में गति कर पाता है, जो एक रूप को यानि आधे को पकड़ लेता है, वह अयोगी हो जाता है, जिसको भोगी कहते हैं। योग का अर्थ होता है-जोड। आध्यात्म की भाषा में भी योग का अर्थ होता है-परा यानि समग्र। योग सुख और दुःख का अतिक्रमण है, जैसे व्यक्ति का मन बीमार हो जाए तो उसका शरीर भी बीमार हो जाता है। मन वही सुखी है जिसका शरीर पूर्णतया स्वस्थ होता है। जिसका प्रभाव ऊर्जा पर भी अवश्य पड़ता है। क्योंकि योग सिर्फ व्यायाम नहीं ये आत्मा से जुड़ा वह विज्ञान है, जिसका प्रभाव शरीर के सभी स्नायुतंत्रों पर पड़ता है। मन एकाग्रता की ओर अग्रसर होता है, विचारों में ठहराव व शरीर अनुशासन में बँट जाता है। योग में वह आनन्द है, जो आत्मा में छिपा रहता है, मौन में छिपा रहता है। योग कहता है कि हमारे भीतर अनंत सम्पदाओं का विस्तार है लेकिन वे सभी स्वचेतन होने से जाग्रत हो पाएँगी। योग दर्शन में बताया गया है कि जब तक आत्मा सांसारिक पदार्थों में आसक्त रहती है, अपने-आपको उसमें लीन किए रहता है। उस समय तक उसे दुःख-सुख होता है। आत्मा और प्रकृति का संयोग ही क्लेशों का कारण है। योग के आठ अंग है, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि। वर्तमान समय में चरित्र गठन (यम-नियम) को लोग उपहास की दृष्टि से देखते हैं पर किसी भी योगासन की क्रिया को स्वचित्त में लाने से पूर्व उससे आत्मसात होना ही सच्चा योग है। मन संयम करने की पहली विधि यह है कि थोडे समय के लिए नेत्र मूंदकर शांत बैठ जाएँ और मन को अपनी इच्छानुसार दौड़ने दें क्योंकि मन की क्रियाओं को जानना ही योग से जुड़ना जैसा है। योगासन के प्रकार करने की विधि व लाभ से समझने से पूर्व स्वयं की ऊर्जा को पहचानें, उस दिन हम चेतन अवस्था में हैं। योग से जोड़ने वाले सूत्र जब कभी मन व्यथित हो, तनावपूर्ण हो, निरंतर सपने देख रहा हो. तब बारी-बारी से श्वास बाहर निकालें और रोकने के द्वारा मन शांत करें। जितना हो सके उकसी गहराई से श्वास छोड़ना, यानि वायु बाहर फेंक देना जिससे मनोदशा बाहर फेंकी जाएगी क्योकि श्वसन ही योग का आधार है। जब यह मनोदशा जा चुकी होगी, एक नई स्वच्छ बयार तुममें प्रवेश कर चुकी होगी। इसलिए योग क्रियाएँ प्रारंभ करने से पूर्व मन को शांत करने से कीमती आसन कोई है ही नहीं। जैसे गर्भ में बच्चे का होता है और आपका ध्यान नाभि पर चला जाए बच्चे का ध्यान. चेतना नाभि में होती है. वैसे ही आपकी भी। कभी-कभी योग करते समय ध्यान हट जाता है, तो कहीं और चला जाता है या कोई हस्तक्षेप कर देता है, तब उससे लड़े नहीं, स्वयं को शांत करें और ध्यान को पुनः नाभि पर ले आएँ, इसका अर्थ है-भटके हुए मन को योग द्वारा स्वयं से जुड़कर एकाग्र व संतुलित करना, आत्मा को चेतना करना और योग द्वारा स्वयं की शक्ति व ऊर्जा को संग्रहित करना। मोटे अर्थ में समझे तो योग द्वारा हम बालक की भाँति सरल हो जाएँ, लेकिन वैज्ञानिक अर्थ में इसका भावार्थ होता है कि हम बच्चे की उस अत्यधिक अवस्था में पहुँच जाएँ जब बच्चा होता ही नहीं माँ ही होती है. अर्थात निश्छल चेतन मन जिसमें योग की शक्ति द्वारा व्यक्ति स्वयं को संचालित करने की क्षमता जुटा पाता है। यदि आप योग करने का मन पहली बार बना रहे हों तो योगासन की पस्तक. उनके चित्र या मित्रों के बताने से योगासन करने से बचें। क्योंकि सही ज्ञान व योगगरु का परामर्श होना अत्यंत आवश्यक है। वस्तुत योग के लाभों को देखते हुए आज स्कल. कॉलेजों में योग की शिक्षा दी जा रही है, योग आपके अच्छे स्वास्थ्य, सुखमय जीवन की कुंजी है, तभी तो आज हमारे देश भारत की इस पुरातन कला, संस्कृति को पूरा विश्व अपना रहा है। योग एक ऐसी रामबाण औषधि है, जो दिमाग को ठण्डा, आत्मा व मन को स्थिर, शरीर को संतुलित व जीवन को एक संगीतमय रफ्तार देता हुआ, संतुष्टि, शाँति चेतना के भाव संचारित करता है। योग का सिद्धांत है कि स्वभावतः शुद्ध, बुद्ध, मुक्त निरंजन आत्मा। योग में प्रविष्ट होने के लिए आवश्यक है कि देह शुद्ध और मन शांत। प्राणायाम से मिलती लंबी आयु योग आसन द्वारा हमारे शरीर के प्रत्येक अंग को व्यायाम करने का मौका मिलता है, जिससे शरीर बलवान बनता है। प्रत्येक अंग सुचारू रूप से कार्य करने लगता है। अतः कुल मिलाकर हमारी स्वस्थ आयु में वृद्धि होती है। स्वस्थ रहने वाला व्यक्ति सदा प्रसन्नचित्त रहता है एवं उसके सगे संबंधियों एवं मित्र भी उससे मिलकर प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। शरीर स्वस्थ होगा तो हमारे पास रोगों से लड़ने की शक्ति भी अधिक होगी। स्वस्थ व्यक्ति कठिन से कठिन परिश्रम करने में भी सदैव आगे रहते हैं एवं जटिल परिस्थतियों का सामना आसानी से कर लेते हैं। यदि आपका शरीर स्वस्थ है तो आपकी त्वचा भी स्वस्थ रहेगी और कील-मुँहासे एवं अन्य चर्मरोग जैसे एलर्जी आदि कभी भी आपको परेशान नहीं करेंगे। शारीरिक व्यायाम के अतिरिक्त प्राणायाम भी योग का एक अभिन्न अंग है। प्राणायाम के द्वारा हम अपने फेफड़ों का उचित एवं पूर्ण उपयोग कर सकते हैं। यह प्रमाणित हो चुका है कि प्राणायाम के नियमित प्रयास से दमा, जुकाम, खर्राटे आदि जेसे दोष सरलतापूर्वक दूर किए जा सकते हैं। यह एक सनातन सत्य है कि हम लोग लम्बे और गहरे साँस द्वारा किसी आयु को लम्बा कर सकते हैं। प्राणायाम के अभ्यास से हम अपने नाक-कान एवं गले से संबंधित लगभग सभी रोगों को दूर कर सकते हैं। आज के युग में हम सभी लोग काम के दबाव में रहते हैं। काम पूर्ण करने की जिद्द में हम ठीक से साँस लेना भी भूल जाते हैं, जिसने हृदय पर जोर पड़ने लगता है एवं कई बीमारियाँ हमें घेर लेती हैं। इन सभी समस्याओं का एक ही समाधान है। और वह है प्राणायाम। योग का तीसरा अभिन्न अंग हैं ध्यान या मेडीटेशन। इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में ध्यान का बहुत बड़ा महत्व है। ध्यान लगाने के निरंतर प्रयास से हम सभी लोग शांत मन-मस्तिष्क से अपने दैनिक कार्य पूर्ण कर सकते हैं। आज के समय में रिश्तों का दबाव से लेकर मानसिक तनाव तक अनेक प्रकार के दबाव या तनाव हमें घेरे रहते हैं। परंतु जो व्यक्ति प्रतिदिन सुबह-सवेरे योग आसन एवं प्राणायाम के साथ-साथ ध्यान भी करता है उसका जीवन सुचारू रूप से चलता जाता है। महर्षि पतंजलि ने भारतवासियों को योग का ज्ञान दिया जिसको अपने जीवन में अपनाकर हम असाध्य रोगों जैसे शुगर, हाई ब्लडप्रेशर, मोटापा, कमर दर्द इत्यादि से हमेशा के लिए मुक्ति पा सकते हैं। संकलन