असम की चाय और श्रमिक

 

asam ki chai aur sharmik

भारत में असम चाय का सबसे बड़ा उत्घ्पादक राज्य है। असम की चाय अपनी विशिष्ट गुणवत्ता विशेषकर अपने कड़क स्वाद और रंग के लिये जानी जाती है। 

इन बागानों में खड़े होकर अगर आप अपने चोरों ओर दे तो दूर-दूर तक आपको सिर्फ चाय के हरे-भरे पौधे ही नजर आते हैं, जैसे कि इस धरती पर घना हरे रंग का कालीन बिछाया गया हो।

प्रत्येक चाय के बागान में तरो-ताजा अंकुरित चाय की पत्तियों की लगातार बिनाई की जाती है। निश्चित रूप से कहे तो, उत्तम चाय पत्ती के लिए प्रत्येक कटाई के दौरान दो पत्ते और एक अंकुर एक साथ तोड़े जाते हैं। एक सामान्य मजदूर प्रति दिन में लगभग 60-80 किलो तक चाय पत्तियों की बिनाई कर सकता है और हर एक किलो के पीछे उसे लगभग 4-5 रूपये दिए जाते हैं। 

एक बांस की टोकरी लगभग 10-12 किलो तक चाय पत्तियाँ ढो सकती है और ये पत्तियाँ दिन में अनेक बार तौली जाती हैं।

आम तौर पर ये मजदूर अपना काम प्रातःकाल 7ः30 पर आरंभ करते हैं और 4ः00 बजे तक काम करते रहते हैं। इसके दौरान उन्हें दोपहर के खाने  की एक छुट्टी  और दो वक्त की चाय की छुट्टी  दी जाती है। पत्तों के अंकुरण के आधार पर हर सुबह इन मजदूरों को उनके सरदार द्वारा एक क्षेत्र सौंपा जाता है। ये मजदूर बड़े ही संगठित रूप से अपना काम करते हैं। 

एक ही प्रकार के पत्ते द्वारा विभिन्न प्रकार की चाय बनाई जाती है। जैसे ग्रीन टी, अर्थाेडेक्स टी, फाइट टी आदि। चाय के पेड़ की सबसे ऊंची शाखा पर एक कलीनुमा पत्ता होता है। उससे फाइट टी बनाई जाती है। यह कली एक पेड़ में 10-15 के बीच होती हैं। वाइट टी की कीमत 5000-12000 रुपए प्रतिकिलो होती है। 

महीने के दूसरे शनिवार के दिन यानि की पंद्रह दिन बाद उन्हें पेमेंट दिया जाता है। कुछ बगानों में साप्ताहिक दिया जाता है। 

असम के चाय बागानों में अधिकतर श्रमिक बिहार, झारखंड, उड़ीसा जैसे राज्यों से हैं। चाय बगान के मालिकों द्वारा श्रमिकों को रहने के लिए घर दिया जाता है और कुछ मात्र में राशन भी दिया जाता है तथा चिकित्सा की पूरी सुविधा दी जाती है। कुछ बगानों में भविष्य निधि योजना भी दी जाती है। 

असम के चाय बागानों में, इन पौधों के बीच बीच में ऽड़े ऊंचे-ऊंचे पेड़ चाय के वृक्षों के साथ साथ वहां पर काम कर रहे मजदूरों को भी अपनी छाया प्रदान करते हैं। ये छायादार पेड़ चाय के पेड़ों की सुरक्षा करते हैं क्योंकि चाय के पेड़ों को न अधिक धूप चाहिए और न अधिक छाया। 

इन पेड़ों पर काली मिर्च की बेल चढ़ा दी जाती है। जिससे काफी मात्र में काली मिर्च प्राप्त हो जाती है। जिससे उन छायादार वृक्षों के तने भी हरे भरे लगते हैं। 

आपको चाय का स्वाद और मिठास देने वाले इन श्रमिकों को सादर नमन।